
समकालीन आध्यात्मिक जगत् मे श्री देवराहा बाबा का परिचय देना अनावश्यक-सा है। फिर भी नये पाठकों की जिज्ञासा के समाधान की दृष्टि से यह बताना युक्ति-युक्त होगा कि पूज्य श्री बाबा एक ऐसे ईश्वरलीन, अष्टांगयोगसिद्ध योगी थे. जिन्हें लगभग एक शताब्दी से भी अधिक अवधि तक भारतवर्ष और विदेशों के, न सिर्फ उनके गृहस्थ-भक्त अपितु अनगिनत संन्यस्त शिष्य भी, साक्षात् परमात्मा की तरह पूजते थे।
उनका जन्म कब, कहाँ हुआ और उनकी आयु कितनी थी, ये प्रश्न आज भी अनुत्तरित ही है। अंतरंग भक्तों की प्रेच्छा पर स्वयं श्री देवराहा बाबा अपनी उत्पत्ति जल से बताते थे। भक्त-समुदाय के बीच उन्होंने एक बार कहा था "मैं तुम लोगों की तरह मनुष्य नही हूं। यह शरीर तो मैंने तुम लोगों के लिए धारण किया है, जो मुझे मनुष्य समझता है, वह मूर्ख है।"
अपने बाल्यकाल में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने अपने माता-पिता के साथ श्री देवराहा बाबा के दर्शन किये थे। और सन् 1954 के प्रयाग कुम्भ में सार्वजनिक रूप से उनका पूजन भी किया।
इंग्लैंड के सम्राट जॉर्ज पंचम ने भी श्री देवराहा बाबा के आश्रम में जाकर उनके दर्शन किये थे। प्रधानमंत्री पद पर आसीन रहते हुए श्रीमती इंदिरा गाँधी व श्री राजीव गांधी ने पूज्य श्री बाबा के दर्शन किये एवं श्री लाल बहादुर शास्त्री तथा श्री अटल बिहारी बाजपेयी भी समय-समय पर उनके दर्शनार्थ आश्रम में उपस्थित होते थे।
कम लोग जानते है कि 15-4-1948 को मईल, देवरिया स्थित वृन्दावन आश्रम में, श्री देवराहा बाबा ने वरिष्ठ स्वतंत्रता । सेनानी श्री पुरुषोत्तम दास टंडन को 'राजर्षि' की उपाधि प्रदान की थी और वर्ष 1962 में उसी विजय दशमी के दिन, श्री दामोदर सातवलेकर को 'ब्रह्मर्षि के पद से अलंकृत किया था।
19 जून 1990 को योगिनी एकादशी, मंगलवार के दिन वृन्दावन में यमुना तट पर उन्होंने अपनी इहलीला को विश्राम दे दिया किन्तु गंगा, यमुना अथवा वृन्दावन में नदी के तट पर लकड़ी के तख्तों के मचान पर सबको परमात्मोन्मुखी करता उनका दिगम्बर स्वरूप और उनकी गंभीर वाणी आज भी भक्त-हृदयों में सजीव है।
पूज्य श्री देवराहा बाबा के शरीर में रहते हुए, उनसे अनुमोदन लेकर बाबा के कतिपय विद्वान् भक्तों ने, पूज्य श्री देवराहा बाबा के उपदेशों का संकलन कर "श्री देवराहा बाबा दिव्य-दर्शन" नामक ग्रन्थ प्रकाशित करने का निश्चय किया था । श्री देवराहा बाबा वृन्दावन के, लार-रोड आश्रम में, इन विद्वान भक्तीं ने अनुनय-विनय कर जब बाबा से प्रकाशन की अनुमति प्राप्त कर ली,्रकाशन की अनुमति प्राप्त कर ली, तब ही इस ग्रन्थ के लेखन का कार्य सम्पन्न हुआ
श्री देवराहा बाबा के निर्देशानुसार इस ग्रन्थ के ऊपर संपादक के रूप में किसी के नाम का उल्लेख नही किया जाना था। बाबा ने यह भी निर्देश दिया- "ग्रन्थ के प्रकाशन में किसी से कोई चंदा आदि न मँगा जाय और न ही ग्रन्थ का कोई मूल्य रखा जाये। ग्रन्थ में किसी मत का खण्डन करके अन्य मत की रथापना का प्रयास न होना चाहिए। इसके अतिरिक्त ग्रन्थ में वर्तमान युग की राजनीति द्वारा उद्भावित भाषा, प्रान्त, दल, जातिवाद, आदि की भी कोई गंध नही होनी चाहिए
पूज्य श्री बाबा के अनुमोदनोपरान्त एंव उनके निर्देशों के अनुरूप ही यह ग्रन्थ प्रकाशित हुआ था इस ग्रन्थ को पूज्य श्री देवराहा बाबा स्वयं अपने हाथों से किन्ही-किन्ही भक्तों को, प्रसाद-स्वरुप प्रदान करते थे। वर्तमान पुनर्प्रकाशित संस्करण, परमात्मा प्राप्ति के मार्ग पर अग्रसर जिज्ञासुओं के लिए, पूज्य श्री देवराहा बाबा के उपदेशों के सारगर्मित एवं प्रामाणिक संकलन के रूप में, सर्वथा अमूल्य है।